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मुख्य लक्ष्य , दृष्टिकोण , हमारा प्रयास , मुख्य प्रकल्प , हमारे मूल्य और विद्यालय के शिक्षण सम्बन्धी नवाचार

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इस प्रकार की राष्ट्रीय शिक्षा-प्रणाली का विकास करना है जिसके द्वारा ऐसी युवा-पीढ़ी का निर्माण हो सके जो हिन्दुत्वनिष्ठ एवं राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत हो, शारीरिक, प्राणिक, मानसिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से पूर्ण विकसित हो तथा जो जीवन की वर्तमान चुनौतियों का सामना सफलता पूर्वक कर सकें और उसका जीवन ग्रामों, वनों, गिरिकन्दराओं एवं झुग्गी-झोपड़ियों में निवास करने वाले दीन-दुःखी अभावग्रस्त अपने बान्धवों को सामाजिक कुरीतियों, शोषण एवं अन्याय से मुक्त कराकर राष्ट्र जीवन को समरस, सुसम्पन्न एवं सुसंस्कृत बनाने के लिए समर्पित हो।

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आज के बालक को एक समर्थ, जिम्मेदार, प्रदर्शनपूर्ण नागरिक बनाने एवं बडे़ पैमाने पर शिक्षण एवं पैतृक समुदाय का सहयोग लेते हुए एक परिपक्व शिक्षण वातावरण तैयार करने के द्वारा पूर्ण विकास के योग्य बनाना । राष्ट्र के प्रति समर्पण भाव ने वनस्थली के विचार को आधार दिया। इससे पूर्व यह भारतीय संस्कृति की ही एक दृष्टि थी। इस प्रकार वनस्थली की समपूर्ण संरचना राष्ट्रीयता तथा भारतीय संस्कृति रूपी दो स्तम्भों पर खडी है। विद्यापीठ शुरू से ही इस बात मे पूर्ण रूप से स्पष्ट थी कि शैक्षिक प्रयास किस प्रकार हों, शिक्षा किस प्रकार दी जायें, जिससे कि विद्यार्थी का सम्पूर्ण व्यक्तित्व विकास हो सके, जबकि उस समय अन्य जगहों पर शिक्षा का मतलब केवल किताबी ज्ञान से था।

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माध्यमिक शिक्षा के क्षेत्र में गोरखपुर में हमारा यह प्रयास प्रारम्भ हुआ सन् 1968 में। प्रारम्भ में ही सरस्वती शिशु मन्दिर पक्कीबाग, दुर्गाबाड़ी, गोरखपुर के परिसर से अलग माध्यमिक विद्यालय की भूमि एवं भवन हो, यह विचार हमारे स्थानीय कार्यकर्ताओं के मस्तिष्क में छात्रों के सर्वांगीण विकास को ध्यान में रखते हुए आया। अस्तु, भूमि-भवन के प्रयास प्रारम्भ हुए। विद्यालय के तत्कालीन प्रधानाचार्य स्व. रवीन्द्रनाथ मिश्र एवं महानगर के स्थानीय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं के प्रयास से दो एकड़ भूमि महानगर स्थित सूर्यकुण्ड नामक स्थान पर प्राप्त हुआ। आवश्यकता को देखते हुए भूमि क्रय के क्रम में सुभाषचन्द्र बोस नगर में तीन एकड़ का भूखण्ड क्रय किया गया। तीव्र गति से प्रारम्भ हुआ विद्यालय निर्माण का कार्य अब आधुनिक सुख-सुविधाओं से युक्त निर्मित है, विशाल विद्यालय भवन, माध्यमिक शिक्षा के क्षेत्र में इस अभिनव प्रयोग को समाज ने सराहा, सन् 1968 में कक्षा षष्ठ में छः भैयाओं से प्रारम्भ किये गये अपने विद्यालय में वर्तमान में 1775 भैया षष्ठ से द्वादश कक्षा तक अध्ययनरत हैं।

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प्रातःकालीन सभा

प्रातःकालीन सभा प्रातःकालीन सभा प्रतिदिन सुबह कुछ मिनट सभा के लिए बिताए जाते है और विद्यार्थी क्रम से उस दिन का विचार और साथ ही साथ दिन के महत्वपूर्ण समाचारों को बोलते हैं।

विद्यालय पत्रिका

विद्यालय पत्रिका ‘देवपुत्र‘ परिचालन में है जो संपूर्ण विद्यालय के विद्यार्थियों और शिक्षकों की लाक्षणिक विशेषताओं को प्रकट करता है ।

पुस्तकालय और प्रयोगशालाएँ

पुस्तकालय विद्यार्थियों को पुस्तकें, समाचार पत्र और पत्रिकाएँ पढ़ने के लिए आमंत्रित करता है । यह लगभग सभी प्रकार के और सभी विषयों के पुस्तकों का भडारगृह है ।

त्यौहार और उत्सव

जहॉं तक त्यौहारों का संबंध है, विद्यार्थी सारे राष्ट्रीय त्यौहारों जैसे  गांधी जयंती, स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, शिक्षक दिवस, गुरू नानक जयंती और इसी प्रकार के अन्य त्यौहार महान उत्साह से मनाते हैं ।

बौद्धिक क्रियाकलाप

ये प्रतियोगिताओं यथा भाषण, उच्चारण, कहानी वाचन, हस्तलेख, मेंहदी ये प्रतियोगिताओं यथा भाषण, उच्चारण, कहानी वाचन, हस्तलेख, मेंहदीमॉंड़, गणित प्रश्नमंत्र, विज्ञान प्रश्नमंत्र और अन्य इसी प्रकार के क्षेत्र सहित सार्थकरूप से संगठित किए जाते है।

खेलकूद

खेलकूद हमारे विद्यालय में प्रोत्साहित किया जाता है । श्रेष्ठ खेलकूद खेलकूद हमारे विद्यालय में प्रोत्साहित किया जाता है । श्रेष्ठ खेलकूद सुविधाओं और विविध खेल विधाओं में  समर्पित प्रशिक्षकों ने विद्यालय  खेलदल का निर्माण्ध किया है ।

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सरस्वती शिशु मंदिर विद्यालय उन आधारभूत मूल्यों को प्रकट करती है जो सरस्वती शिशु मंदिर विद्यालयों में प्रत्येक शैक्षणिक एवं पाठ्य सहगामी क्रियाकलापों के साथ गुथी हुई है । हम चार मूल्यों को जीते हैं और अपनी सॉंसों में बसाते हैं जो उस प्रत्येक चीज का आधार बनाते हैं जो हम करते हैं । इनमें शामिल हैं:

·  नवाचार के माध्यम से नेतृत्व
·  श्रेष्ठता अन्वेषण
·  शिक्षण के द्वारा वृद्धि
·  वैश्विक नागरिकता

इन मूल्यों को प्रमुखता देते हुए हम स्वतंत्र अधिगम को प्रोत्साहित करते हैं और विद्यार्थियों को जिम्मेदार बनाने हेतु उनका सशक्तिकरण करते है। विद्यार्थी हमारे श्रेष्ठतम निजी विद्यालयों में समझ बूझ और सहनशीलता,जो उन्हें वैश्विक नागरिक बनाने में सहयोग करते है, के भाव सहित विविधता का उत्सव मनाना सीखते हैं ।

शिक्षा उस व्यवहार का नाम है जो बालक के जीवन एवं आचरण में सकारात्मक परिवर्तन लाती है। सर्वांगीण शिक्षा का उद्देश्य बालक की शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक विकास करना है। अपना छात्रावास इसी कड़ी से जुड़ा छात्रों का आधुनिक सुविधा के साथ संस्कारक्षम वातावरण में उत्तम शिक्षा देने वाला अनुपम संस्थान है। यहाँ पर समस्त कार्यक्रम संस्कार योजना से संचालित होते हैं। छात्रों के प्रातः जागरण से लेकर रात्रि शयन तक प्रातःस्मरण, प्रार्थना, आचार्य अभिवादन, खेलकूद, शाखा, स्वाध्याय, भोजन, आरती, भजन-कीर्तन, महापुरुषों की जयन्तियाँ, पर्व एवं त्यौहार आदि दिनचर्या के सभी अंगों में संस्कार का व्यापक परिदृश्य लक्षित होता है।

छात्रों के सर्वांगीण विकास हेतु विद्याभारती की योजनानुसार पंचमुखी शिक्षा की व्यवस्था यथा

·  शारीरिक शिक्षा

·  मानसिक शिक्षा

·  व्यावसायिक शिक्षा

·  नैतिक शिक्षा

·  शारीरिक शिक्षा

· आध्यात्मिक शिक्षा

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1. आपका विद्यालय आपके द्वार योजना के अन्र्तगत शासकीय/अशासकीय 10वी एवं 12वी के भैया बहिनो को फरवरी माह में विद्यालय के आचार्याे द्वारा उनके गाॅव जाकर गणित,विज्ञान एवं अंग्रेजी विषय का निषुल्क षिक्षण प्रदान किया।

2. सम्भावित प्रावीण्य सुची में आने वाले भैया बहिनो की प्रांत स्तरीय तीन दिवसीय आवासीय कार्यषाला का आयोजन किया गया जिसका मुख्य उदेष्य मध्यप्रदेष के प्रावीण्य सुची में लाना था ।

3. षैक्षणिक स्तर सुधारने हेतु समय-समय पर विषय विद्व्वानो का मार्गदर्षन भी भैया बहिनो को प्राप्त होता रहता है। जिसमें विषय संबधि समस्याओ का निराकरण किया जाता है, ओर नई-नई जानकारी भी प्राप्त होती है।

4. भैया-बहिनों के षिक्षण स्तर के अनुसार षिक्षण कार्य कराया जाता है जिसमें गतिविधि आधारित षिक्षण पर विषेष ध्यान दिया जाता है। इसके साथ समूह बनाकर भी भैया-बहिनो का षिक्षण कराया जाता है। जिससे उनके अन्दर विषय संबधि रुचि का विकास हों।

5. विद्यालय द्वारा ऐसे ग्रामो में निषुल्क एकल विद्यालय चलाए जाते है जिसमें कारण वष ऐसे बच्चे जो आर्थिक रूप से कमजोर या विद्यालय जाने में असमर्थ है ऐसे बच्चे के लिए 18 सरस्वती संस्कार केन्द्र विद्यालय संचालित करता है।

6. भैया बहिनो को पूर्ण लोक तांत्रीक प्रक्रिया समझाने के लिए विद्यालय द्वारा प्रति वर्ष संवैधानिक तरीके से निर्वाचन किया जाता है ओर उसके पष्चात छात्र संसद का भह निर्माण किया जाता है ओर छात्र मंत्रीयो को विद्यालय संबधि दायित्व भी प्रदान किया जाता है।

विद्या ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम्। पात्रत्वाद्धनमाप्नोति धनाद्धर्मं ततः सुखम्॥

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