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भाऊसाहब भुस्कुटे - मध्य क्षेत्र के आदर्श स्वयंसेवक

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भाऊसाहब भुस्कुटे स्मृति लोक न्यास का प्रकल्प सरस्वती ग्रामोदय उ.मा. विद्यालय विधा भारती के मार्गदर्षन में संचालित हो रहा है। यह विद्यालय 1983 से निरंतर ग्रामीण षिक्षा के क्षेत्र में अनवरत सेवारत है। वर्तमान में 839 भैया-बहिन एवं 48 आचार्य दीदीयो के मार्गदर्षन में विद्याभारती के लक्ष्य की ओर अग्रसर है।

हरदा जिले में संघ कार्य का प्रारम्भ तो बाबा साहब आप्टे के हरदा प्रवास के समय 1937 में हुआ, किन्तु प्रारम्भ में यह अनियमित ही रही ! सन 1939 में गोविन्द राव उपाख्य भाऊसाहब भूस्कुटे नागपुर से अपनी पढाई पूरी कर बापस घर लौटे तथा उन्होंने संघ कार्य हेतु सतत प्रवास प्रारम्भ किये ! तब समूचे विभाग में शाखाओं का जाल फ़ैलने के साथ हरदा की शाखा को भी स्थायित्व मिला ! सन 1945 आते आते हरदा नगर व तहसील में तेजी से कार्य का विस्तार हुआ ! हरदा ही नहीं तो सम्पूर्ण अंचल में संघ कार्य विस्तार की धुरी श्री भाऊ साहब भुस्कुटे रहे ! 14 जून, 1915 को बुरहानपुर (मध्य प्रदेश) में जन्मे श्री गोविन्द कृष्ण भुस्कुटे, आगे चलकर भाऊ साहब भुस्कुटे के नाम से प्रसिद्ध हुए ।

18 वीं सदी में इनके अधिकांश पूर्वजों को जंजीरा के किलेदार सिद्दी ने मार डाला था। जो किसी तरह बच गयेे, वे पेशवा की सेना में भर्ती हो गयेे। उनके शौर्य से प्रभावित होकर पेशवा ने उन्हें बुरहानपुर, टिमरनी और निकटवर्ती क्षेत्र की जागीर उपहार में दे दी थी। 

उस क्षेत्र में लुटेरों का बड़ा आतंक था; पर इनके पुरखों ने उन्हें कठोरता से समाप्त किया। इस कारण इनके परिवार को पूरे क्षेत्र में बड़े आदर से देखा जाता था। इनका परिवार टिमरनी की विशाल गढ़ी में रहता था। भाऊसाहब सरदार कृष्णराव एवं माता अन्नपूर्णा की एकमात्र सन्तान थे। अतः इन्हें किसी प्रकार का कष्ट नहीं देखना पड़ा। प्राथमिक शिक्षा अपने स्थान पर ही पूरी कर वे पढ़़ने के लिए नागपुर आ गये। 1932 की विजयादशमी से वे नियमित शाखा पर जाने लगे। 1933 में उनका सम्पर्क डा. हेडगेवार से हुआ। भाऊसाहब ने 1937 में बी.ए आनर्स, 1938 में एम.ए तथा 1939 में कानून की परीक्षाएँ प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। इसी दौरान उन्होंने संघ शिक्षा वर्गों का प्रशिक्षण भी पूरा किया और संघ योजना से प्रतिवर्ष शिक्षक के रूप में देश भर के वर्गों में जाने लगे । 

आम तौर पर भाऊ साहब की जमीनों पर कपास की खेती होती थी तथा उससे उन्हें मुनाफ़ा भी अच्छा मिलता था, किन्तु १९६२ के युद्धकाल में उन्होंने अपनी पूरी जमीन पर गेंहू की खेती करबाई ! उनका कहना था कि संकट काल में देश को खाद्यान्न ज्यादा जरूरी है ! इस समय पैसा महत्वपूर्ण नही है ! उन पर प्रान्त कार्यवाह से लेकर क्षेत्र प्रचारक तक के दायित्व रहे। भारतीय किसान संघ की स्थापना होने पर श्री दत्तोपन्त ठेेंगड़ी के साथ भाऊसाहब भी उसके मार्गदर्शक रहे। 75 वर्ष पूरे होने पर कार्यकर्त्ताओं ने उनके ‘अमृत महोत्सव’ की योजना बनायी। भाऊसाहब इसके लिए बड़ी कठिनाई से तैयार हुए। वे कहते थे कि मैं उससे पहले ही भाग जाऊँगा और तुम ढूँढते रह जाओगे। वसंत पंचमी (21 जनवरी, 1991) की तिथि इसके लिए निश्चित की गयी; पर उससे बीस दिन पूर्व एक जनवरी, 1991 को वे सचमुच चले गये। भाऊ साहब के चचेरे भाई श्री भालचंद्र राव उपाख्य बाबा साहब भुस्कुटे भी आदर्श स्वयंसेवक थे ! वे जिले के प्रथम संघ चालक भी रहे ! इतने बड़े परिवार के पुत्र होने के बाद भी वे २० – २० कि.मी. तक साईकिल से प्रवास करते थे ! तरुण स्वयंसेवकों में ऊर्जा का संचार करने में उन्हें महारथ हासिल थी ! इस हेतु वे अत्यंत प्रभावशाली ढंग से संघ स्थान पर देश भक्ति पूर्ण कथा कहानियां स्वयंसेवकों को सुनाते थे ! वे अपनी ओजपूर्ण वाणी में तथा घूमते चलते अपनी भाव भंगिमा से इस प्रकार सजीव चित्रण करते कि सुनने बाले स्वतः विषयवस्तु से जुडकर अपनी आँखों के सामने उस द्रश्य को अनुभव करने लगते ! आगर तथा श्योपुर में प्रचारक रहे श्री संतोष जोशी मूलतः हरदा जिले के बावड़िया गाँव के रहने बाले हैं ! उन्होंने खुद के जीवन की दिशा बदलने में बाबा साहब के योगदान को रेखांकित करने बाला एक प्रसंग सुनाया ! वर्षाकाल में उन दिनों गाँवों तक कोई वाहन पहुँचना कठिन होता था ! संतोष जी के गाँव तक पहुँचने के लिए भी तीन कि.मी. पैदल चलना पडता था ! वर्षा हो जाने के बाद तो गड्ढे और कीचड के कारण चलना और भी कठिन हो जाता था ! किन्तु एक दिन वे हैरत में पड गए जब देखा कि बाबा साहब उनके घर की तरफ चले आ रहे हैं ! उनको बहां तक आने में कितनी कठिनाई हुई है यह उनकी हालत देखकर खुद ही समझ में आ रहा था !

स्वाधीनता प्राप्ति के पश्चात् ‘स्व’ की अनुभूति के आधार पर जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में ‘स्व’ के तंत्र की रचना अपेक्षित थी। यदि बालक के जीवन में स्वाभिमान, स्वदेश, स्वसंस्कृति व इतिहास की गौरवशाली परम्परा के प्रति अपनत्व का भाव जागृत करने का प्रयास किया होता, तो भावात्मक एकात्मकता, नागरिक का स्वभाव बन जाती है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में योग्य व्यक्ति का अभाव मुँह बाये खड़ा नहीं दिखाई देता। राष्ट्र निर्माण की अनेक योजनायें बनीं, कल-कारखाने बने परन्तु व्यक्ति निर्माण का कार्य पिछड़ गया। सुयोग्य, सार्थक एवं संस्कारमय शिक्षा ही किसी राष्ट्र के निर्माण और प्रगति का सर्वोत्तम प्रभावी और एकमात्र साधन है। आज अपने देश में युवकों के चारित्रिक पतन की पराकाष्ठा सर्वत्र दृष्टिगोचर हो रही है। अपने देश के गौरव को विस्मृत कर स्वाभिमान शून्य हो पाश्चात्य संस्कृति की ओर उनका रुझान स्पष्ट परिलक्षित हो रहा है। इसका मूलभूत कारण सही एवं सुयोग्य शिक्षा का नितान्त अभाव ही है, अतः देश को आवश्यकता है ऐसे विद्यालयों की जहाँ स्वभाषा में स्वदेशी, स्वसंस्कृति एवं जीवनादर्शों के ज्ञान के साथ बालक के जीवन में अपने महापुरुषों, उनकी कृतियों व गौरवशाली परम्परा के प्रति गौरव एवं स्वाभिमान के भाव जाग उठें। यही भावात्मक एकता का स्थायी आधार बनेगा, भूमि का कण-कण पवित्र बन जायेगा, व्यक्ति की श्रद्धा, आस्था का रूप धारण कर उसकी कर्मशक्ति को प्रेरित कर उसमें से देवत्व प्रकट कर सकेगी। यही राष्ट्र की चिरंजीवी शक्ति होगी।

कृषि प्रशिक्षण एवं अनुसंधान

संस्कार केन्द्र

व्यक्तित्व एवं बाल प्रतिभा विकास

जयंतियाँ एवं उत्सव

स्वास्थ्य शिविर

जैविक कृषि

ग्राम ज्ञानपीठ

सरस्वती ग्रामोदय विद्यालय

श्रद्धेय भाऊराव देवरस, कृष्णचन्द्र गाँधी तथा नानाजी देशमुख जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता थे, उनकी प्रेरणा से गोरखपुर में 1952 में इस योजना का श्रीगणेश हुआ, नाम रखा गया ‘सरस्वती शिशु मन्दिर’ जो बाद में अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान विद्या भारती का शिक्षा के क्षेत्र में प्रथम दीपक के नाम से विख्यात हुआ। शनैः-शनैः योजना के दीपक न केवल उत्तर प्रदेश में अपितु सम्पूर्ण देश में प्रज्ज्वलित होने लगे। कालान्तर में हमारे सरस्वती शिशु मन्दिरों से जुड़े हुए अभिभावकोंएवं शिक्षा प्रेमियों द्वारा यह अनुभव किया जाने लगा कि अपने इस अभिनव संस्कार के प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र के प्रयोग को कक्षा पंचम से आगे बढ़ाया जाय। कक्षा पंचम के आगे कक्षा षष्ठ से द्वादश तक के लिए प्रारम्भ किया गया, ‘सरस्वती विद्या मन्दिर’। माध्यमिक शिक्षा के क्षेत्र में आगरा में प्रदीप्त हमारा प्रथम दीपक देखते-देखते प्रदेश के अन्य स्थानों यथा गोरखपुर, कानपुर, लखनऊ, नैनीताल, मथुरा, वृन्दावन, रुनकता (आगरा), कोसीकला, फैजाबाद, सुल्तानपुर, देवरिया, हापुड़, बलिया, फिरोजाबाद, शक्तिनगर, अलीगढ़, गाजियाबाद, नोयडा, साहिबाबाद, एटा, बस्ती, खुर्जा, रुड़की, गाजीपुर और सम्भल में प्रदीप्त होने लगा। वर्तमान में उत्तर प्रदेश में लगभग 46 सी.बी.एस.ई. के तथा 225 उत्तर प्रदेश माध्यमिक बोर्ड के वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय यशस्वी हो रहे हैं।

विद्या ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम्। पात्रत्वाद्धनमाप्नोति धनाद्धर्मं ततः सुखम्॥

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