इस प्रकार की राष्ट्रीय शिक्षा-प्रणाली का विकास करना है जिसके द्वारा ऐसी युवा-पीढ़ी का निर्माण हो सके जो हिन्दुत्वनिष्ठ एवं राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत हो, शारीरिक, प्राणिक, मानसिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से पूर्ण विकसित हो तथा जो जीवन की वर्तमान चुनौतियों का सामना सफलता पूर्वक कर सकें और उसका जीवन ग्रामों, वनों, गिरिकन्दराओं एवं झुग्गी-झोपड़ियों में निवास करने वाले दीन-दुःखी अभावग्रस्त अपने बान्धवों को सामाजिक कुरीतियों, शोषण एवं अन्याय से मुक्त कराकर राष्ट्र जीवन को समरस, सुसम्पन्न एवं सुसंस्कृत बनाने के लिए समर्पित हो।
आज के बालक को एक समर्थ, जिम्मेदार, प्रदर्शनपूर्ण नागरिक बनाने एवं बडे़ पैमाने पर शिक्षण एवं पैतृक समुदाय का सहयोग लेते हुए एक परिपक्व शिक्षण वातावरण तैयार करने के द्वारा पूर्ण विकास के योग्य बनाना । राष्ट्र के प्रति समर्पण भाव ने वनस्थली के विचार को आधार दिया। इससे पूर्व यह भारतीय संस्कृति की ही एक दृष्टि थी। इस प्रकार वनस्थली की समपूर्ण संरचना राष्ट्रीयता तथा भारतीय संस्कृति रूपी दो स्तम्भों पर खडी है। विद्यापीठ शुरू से ही इस बात मे पूर्ण रूप से स्पष्ट थी कि शैक्षिक प्रयास किस प्रकार हों, शिक्षा किस प्रकार दी जायें, जिससे कि विद्यार्थी का सम्पूर्ण व्यक्तित्व विकास हो सके, जबकि उस समय अन्य जगहों पर शिक्षा का मतलब केवल किताबी ज्ञान से था।
भाऊसाहब भुस्कुटे स्मृति लोक न्यास का प्रकल्प सरस्वती ग्रामोदय उ.मा. विद्यालय विधा भारती के मार्गदर्षन में संचालित हो रहा है। यह विद्यालय 1983 से निरंतर ग्रामीण षिक्षा के क्षेत्र में अनवरत सेवारत है। वर्तमान में 839 भैया-बहिन एवं 48 आचार्य दीदीयो के मार्गदर्षन में विद्याभारती के लक्ष्य की ओर अग्रसर है।
हरदा जिले में संघ कार्य का प्रारम्भ तो बाबा साहब आप्टे के हरदा प्रवास के समय 1937 में हुआ, किन्तु प्रारम्भ में यह अनियमित ही रही ! सन 1939 में गोविन्द राव उपाख्य भाऊसाहब भूस्कुटे नागपुर से अपनी पढाई पूरी कर बापस घर लौटे तथा उन्होंने संघ कार्य हेतु सतत प्रवास प्रारम्भ किये ! तब समूचे विभाग में शाखाओं का जाल फ़ैलने के साथ हरदा की शाखा को भी स्थायित्व मिला ! सन 1945 आते आते हरदा नगर व तहसील में तेजी से कार्य का विस्तार हुआ ! हरदा ही नहीं तो सम्पूर्ण अंचल में संघ कार्य विस्तार की धुरी श्री भाऊ साहब भुस्कुटे रहे ! 14 जून, 1915 को बुरहानपुर (मध्य प्रदेश) में जन्मे श्री गोविन्द कृष्ण भुस्कुटे, आगे चलकर भाऊ साहब भुस्कुटे के नाम से प्रसिद्ध हुए ।
18 वीं सदी में इनके अधिकांश पूर्वजों को जंजीरा के किलेदार सिद्दी ने मार डाला था। जो किसी तरह बच गयेे, वे पेशवा की सेना में भर्ती हो गयेे। उनके शौर्य से प्रभावित होकर पेशवा ने उन्हें बुरहानपुर, टिमरनी और निकटवर्ती क्षेत्र की जागीर उपहार में दे दी थी। उस क्षेत्र में लुटेरों का बड़ा आतंक था; पर इनके पुरखों ने उन्हें कठोरता से समाप्त किया। इस कारण इनके परिवार को पूरे क्षेत्र में बड़े आदर से देखा जाता था।
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हम सरस्वती शिशु मंदिर के रूप में श्रेष्ठता की प्रतिबद्धता सहित स्तरीय शिक्षा के क्षेत्र में विस्तृत हित रखते हैं । लक्ष्मीपुर में हमारा पहला विद्यालय जो 1969 में प्रारंभ हुआ 48 वर्षों की अवधि में विकसित और शाखान्वित हुआ । सरस्वती शिशु मंदिर विद्यालय वस्तुतः एक खोज का स्थान है । हमारा लक्ष्य सारे बालकों के प्रतिभाओं के विकास उनकी क्षमता तक पहुचने और हमारे साथ उनके बिताए समय को खुशहाल बनाना है । हम उच्चतम गुणवत्ता वाले अधिगम को विद्यालय में प्रदान करने हेतु लगातार परिश्रम करते हैं । एक शिक्षण विद्यालय के रूप में हम समानता शिक्षणात्मक विद्यालय संगठन के माध्यम से प्रशिक्षण और सहारा प्रदान करने में सौभाग्यशाली हैं । साल दर साल विद्यालय ने साक्षरता और बुनियादी अंक ज्ञान के क्षेत्र में उपलब्धियों के उच्च स्तर को अर्जित किया है । पठन, लेखन और गणित के क्षेत्र में राष्ट्रीय अपेक्षाओं पर खरा उतरकर बालक विद्यालय छोड़ते हैं । हमारे क्रियाकलाप अनुभवों और अवसरों के एक विस्तृत क्षेत्र को प्रदान करते हुए उत्कृष्ट हैं । बालक विषयक प्रकरणों के माध्यम से उनकी साक्षरता, बुनियादी अंकज्ञान और आई0सी0टी0 कौशलों का अनुप्रयोग सीखते हैं । हमारे पास भवन स्थल पर शिक्षित विशेषज्ञ हैं जो पूरे विद्यालय में उच्च श्रेणी की शारीरिक शिक्षा (पी0ई0) का अध्यापन करते हैं । हमारी विद्यालय पश्चात्ग तिविधियॉं भी शारीरिक और रचनात्मक अनुभवों के एक विस्तृत क्षेत्र को प्रदान करते हैं ।
छात्रों के सर्वागिण विकास , कौशल विकास एवं कृषि की बेहतर शिक्षा के लिए , सरस्वती ग्रामोदय उ. मा. विद्यालय गोविन्दनगर में प्रवेश दिलाकर अपने बच्चे का भविष्य बनाएं|हम भारत के अग्रणी शिक्षण समूह संस्थानों में से एक बन गए हैं, जो हमारे छात्रों को अकादमिक उत्कृष्टता प्रदान करते हैं। यहाँ उन समर्पित शिक्षकों द्वारा सहायता प्रदान की जाती है, जो कि बाल-केंद्रित गुणात्मक शिक्षा के प्रति उनकी ऊर्जा और संसाधनों को संचालित करने के लिए प्रशिक्षित होते हैं। हम दुनिया भर में मैत्री शिक्षण संस्थानों की स्थापना करके सीमाओं में भी निकल गए हैं।
मेरी विद्यार्थियों से प्रार्थना है कि वे छिन्न-विछिन्न कल्पनाओं में न बहें । आपको देश का स्तम्भ कहा जाता है, किन्तु देश ऐसे स्तम्भों पर खड़ा नहीं होता अतएव, मैं केवल इतना ही कहूँगा कि आप देश के सेवक बनें पूरी शक्ति से देश निर्माण कार्य में लगें । केवल वही राष्ट्र प्रगति में अग्रणी होता है। जहाँ की युवा शक्ति अपनी क्षमता का एक-एक कण राष्ट्र की प्रगति के लिए दाँव पर लगाती है। मैं आग्रह करता हूँ कि स्वयं की प्रसिद्धि, सम्पत्ति एवं अधिकार की अभिलाषा देश की वेदी पर न्यौछावर करें । इसी में देश की समृद्धि, स्वयं का सौख्य एवं समाज का गौरव है ।